नहीं फटकता अँधकार
पहरुए हैं उजाले के।
अँधकार का नाश करेंगे
दिए दिवाली के।
हथकड़ियाँ हाँथों में होंगी
किसी मवाली के।।
हैं कभी-कभी फ़साद हो जाते
बैठे-ठाले के।
दिन-दहाड़े लूट है होती
कैसा शासन है।
गली, मोहल्ले, चोराहों में
छाया त्रासन है।।
वातानुकूलित दु:ख पढ़ेंगे
पाँवों के छाले के।
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