छद्म संवेदनाओं को भुना लो साथी (कविता)

छद्म संवेदनाओं को भुना लो साथी
कहीं दुर्घटनाओं का यह सुअवसर निकल न जाए

भीतर से ज़रा और दम साधो
आँखों में तनिक और नमी लाओ
चेहरे पर पोत लो रोना और भी अधिक
कि भुक्तभोगी जान जाए कि तुम उसके दुख में उससे अधिक दुखी हो

उसकी माँ को अँकवार में भींच लो बच्चे की तरह
और अपनी शर्तिया वेदना से उसे तृप्त कर दो
जब तक की वह तुम्हारी धूर्त संवेदना को पहचान न ले

उसके दुख में सर्वाधिक करुणा उग लो
और उसका सबसे बड़ा हितकारी बनने की प्रतियोगिता में प्रथम आओ

दुर्घटना की एक-एक जानकारी बहुत क़रीने से लो ऐसे
कि जैसे तुम देवता हो और उसमें कुछ ज़रूरी बदलाव कर सकते हो

इन सबके बीच एक ज़रूरी काम यह भी करना कि
वह जो भीड़ से अलग खड़ा अपनी ही ख़ामोशी में बिलखता जा रहा है
उसे परिदृश्य से बाहर ही धकेले रखना
कहीं वह फूट पड़ा तो
तुम्हारे आँसुओं का नक़लीपन पहचान में आ जाएगा

उसके फूटने के पहले
छद्म संवेदनाओं को भुना लो साथी
कहीं दुर्घटनाओं का यह सुअवसर निकल न जाए।


रचनाकार : विहाग वैभव
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