छंद (कविता)

मैं सभी ओर से खुला हूँ
वन-सा, वन-सा अपने में बंद हूँ
शब्द में मेरी समाई नहीं होगी
मैं सन्नाटे का छंद हूँ।


रचनाकार : अज्ञेय
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