छोटे की ज़िम्मेदारी (कविता)

छोटे ने
पर्याप्त मात्रा में
घास-फूस इकट्ठा कर लिया है
और ललचाई नज़रों से
मेरी ओर देख रहा है
एक अंगार के लिए।
छोटा
एक अंगार का मुहताज़।
अपने बड़े होने का मुहताज़ छोटा,
थोड़ी ही देर में झुँझलाकर
ग़ुस्से में मुझे न जाने क्या-क्या कहता हुआ
खलिहान से बाहर निकल जाएगा
तब कितना मुश्किल होगा
छोटे को
अंगार का इतिहास समझाना
कि लाल होने के लिए
किन-किन अवस्थाओं से होकर
गुज़रना पड़ा है अंगार को
या बीज़, अंकुर, पत्ते या तने वाली
तासीर नहीं होती अंगार की
अंगार से हथेलियाँ जल जाती हैं
हथेलियाँ ही नहीं
खेत-खलिहान, घर-गाँव, सब कुछ
भस्म हो जाते हैं।

पर छोटे को
अंगार के इतिहास में कोई दिलचस्पी नहीं
उसे मतलब है घास-फूस के जल जाने से
आख़िरकार
बरसात होने और नई घास उगने से पहले
खलिहान की सफ़ाई बहुत ज़रूरी होती है
जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी
छोटे पर है।


रचनाकार : शरद बिलाैरे
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