चिंता (कविता)

हर समय एक भय मिश्रित चिंता,
रहती है मन में।
जैसे कोई आ रहा हो मेरे पास
कोई दुःसंवाद सुनाने।
या संकेत कर रहा हो;
जीवन के यथार्थ सत्य का।
सोचता हूॅं–
अपने होने का अर्थ,
या हर एक कड़ियाँ, जो
जुड़ी है मुझसे या भावनाओं से मेरी।
तीव्र अंतर्विरोध और प्रगल्भ प्रेम,
क्षण-क्षण कुरेदता है मानस को।
जैसे कोई दूर मादक धुन बजा रहा हो।
उसकी विस्मृति या अभिव्यक्ति
सदा आहत करती अन्तःचेतस को।
हृदय द्रवित हो उठता है
विचारों की ऑंधी
विस्मृत घटनाओं को पुनर्सृजित करती है।
और एक टिश छोड़ जाती है
एक दूसरी दुनिया रचने के लिए।


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 9 फ़रवरी 2025
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