चूरन अमल बेद का भारी।
जिस को खाते कृष्ण मुरारी॥
मेरा पाचक है पचलोना।
जिसको खाता श्याम सलोना॥
चूरन बना मसालेदार।
जिसमें खट्टे की बहार॥
मेरा चूरन जो कोइ खाय।
मुझको छोड़ कहीं नहिं जाय॥
हिन्दू चूरन इसका नाम।
विलायत पूरन इसका काम॥
चूरन जब से हिन्द में आया।
इसका धन बल सभी घटाया॥
चूरन ऐसा हट्टा कट्टा।
कीना दांत सभी का खट्टा॥
चूरन चला डाल की मंडी।
इसको खाएंगी सब रंडी॥
चूरन अमले सब जो खावैं।
दूनी रुशवत तुरत पचावैं॥
चूरन नाटकवाले खाते।
इसकी नकल पचा कर लाते॥
चूरन सभी महाजन खाते।
जिससे जमा हजम कर जाते॥
चूरन खाते लाला लोग।
जिनको अकिल अजीरन रोग॥
चूरन खावै एडिटर जात।
जिनके पेट पचै नहिं बात॥
चूरन साहेब लोग जो खाता।
साहा हिंद हजम कर जाता॥
चूरन पूलिसवाले खाते।
सब कानून हजम कर जाते॥
ले चूरन कर ढेर, बेचा टके सेर॥
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें