कोरोना की कहानी (कविता)

चारो ओर मचा कोहराम है,
ये कैसी बेचैनी है,
ये कैसा तूफ़ान है।
एक छोटा सा वायरस,
खाँसी जिसकी पहचान है,
कर देता साँस भी जाम है,
कोरोना उसका नाम है।

संक्रमण जिसकी जान है,
ज़ुकाम भी पहचान है,
मानव इसका हथियार है,
जीवन का संहार है।

यह देखने मे छोटा है,
पर ले लेता सब की जान है,
कर देता नाक भी जाम है,
कोरोना इसका नाम है।

बहुत हो गया उपदेश है,
अब सुनो जो शेष है।
यह मानव की लगाई आग है,
उसकी फैलाई शाख है,
जिसने जानवर नहीं छोड़ा है,
सदा प्रकृति से खेला है।

यदि इससे बचना है,
कुछ एहतियात रखना है।
भीड़ में नहीं निकलना है,
संक्रमण से बचना है।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 20 मार्च, 2020
यह पृष्ठ 201 बार देखा गया है
×

अगली रचना

दीवाली का दीया


पिछली रचना

प्रेम की परिभाषा
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें