कोरोना (कविता)

जगत विनाश करने को,
मानव के प्राण हरने को,
एक वायरस कही से आन पड़ा,
कोरोना इसका नाम पड़ा।
इसका स्वरूप विस्तार देख,
उलझा सकल संसार देख,
रोके नहीं रुक पाता हैं,
बढ़ता चला ही जाता है।
कैसा जगत पे घात पड़ा,
बेबस मनुज लाचार पड़ा।
कहने को स्वालंबी था,
मानव बड़ा तू दंभी था।
तूने नभ में क़दम बढ़ाया है,
तू चाँद नापकर आया है।
पर प्रकृति से ऊपर जा न सका,
तू उससे पार पा न सका।
अपने ही व्यूह में फँसा हुआ,
एक सूक्ष्म जीव से हारा हुआ,
तू घरों में बंद मजबूर है,
स्वजनों से अपने दूर हैं।
लड़ने को उससे कोई भी
सूझता नहीं हथियार हैं,
तू मानव हैं, पर मानव तू
कितना बेबस लाचार हैं।।


रचनाकार : विजय कृष्ण
लेखन तिथि : 2021
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