दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई
कोई तदबीर कारगर न हुई
कोशिशें हम ने कीं हज़ार मगर
इश्क़ में एक मो'तबर न हुई
कर चुके हम को बे-गुनाह शहीद
आप की आँख फिर भी तर न हुई
ना-रसा आह-ए-आशिक़ाँ वो कहाँ
दूर उन से जो बे-असर न हुई
आई बुझने को अपनी शम-ए-हयात
शब-ए-ग़म की मगर सहर न हुई
शब थे हम गर्म-ए-नाला-हा-ए-फ़िराक़
सुब्ह इक आह-ए-सर्द सर न हुई
तुम से क्यूँकर वो छुप सके 'हसरत'
निगह-ए-शौक़ पर्दा दर न हुई
अगली रचना
देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करनापिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें