दर्द कब दिल में मेहरबाँ न रहा, 
हाँ मगर क़ाबिल-ए-बयाँ न रहा। 
हम जो गुलशन में थे बहार न थी, 
जब बहार आई आशियाँ न रहा। 
ग़म गराँ जब न था गराँ था मुझे, 
जब गराँ हो गया गराँ न रहा। 
दोस्तों का करम मआ'ज़-अल्लाह, 
शिकवा-ए-जौर-ए-दुश्मनाँ न रहा। 
बिजलियों को दुआएँ देता हूँ, 
दोश पर बार-ए-आशियाँ न रहा। 

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