साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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दिल्ली, दिल्ली
1955
मैं हँसता ज़रूर हूँ मगर दु:ख के सुरूर में... हँसना अब दीवानगी में ढलता जा रहा है
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