देखो फिर आया बसंत
सबके मन को हर्षाया बसंत
नव कोपलें पनप रही है,
फूलों की चादर पसर रही है,
महक उठा है जनमन जीवन
पुलकित हो उठा अपना भी मन।
मन बासंती आगोश में जकड़ा
मन मयूर सा नृत्य कर रहा
गुल गुलशन गुलफ़ाम हो रहा
ख़ुशबू चहुँओर बिखर रहा है,
बड़े नाज़ से आया बसंत है
सब पर बंसत का ख़ुमार चढ़ रहा
ऋतुराज का नृत्य चल रहा।
सब स्वागत में बसंत के आतुर
नवजोश संचार कर रहा
नव ऊर्जा देती नव ऊर्जा
जीवन में नवरंग भर रहा
बंसत का सब पर असर हो रहा
उत्सव ख़ुशियों का हो रहा
बसंतोत्सव का स्वागत हो रहा
अगणित सा उत्साह छा रहा।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें