डेंगू और मैं (कविता)

डॉक्टर साहब ने बताया कि हमें हो गया डेंगू,
हमने हँसते हुए डेंगू को दिखा दिया ठेंगू।
डेंगू बोला कि मुझे हराएगा,
बंदर-घुड़की से मुझे डराएगा।
सिर दर्द, बदन दर्द देकर मुझे डराने लगा,
बोला मुझसे देखो मैं तुम्हें हराने लगा।
मैं हँसा और डेंगू से बोला मेरी सुन,
तू क्यों पाले हुए है मुझे हराने की धुन।
सिर दर्द, बदन दर्द से मुझे तू नहीं हरा पाएगा,
अपनी इन बंदर-घुड़कियों से मुझे नहीं डरा पाएगा।
फिर उसने मुझे उल्टी और पेट दर्द से सताया,
कुछ नहीं होगा तेरे यों सताने से मैंने उसे बताया।
जब मेरे सामने डेंगू की एक न चली,
देखने लगा जाने की कोई और गली।
जाते हुए धीरे से मेरे कान में फुसफुसाया,
डॉक्टर ने नहीं मुझे तुम्हारे आत्मविश्वास ने हराया।
इसीलिए साथियों आप सबको बताना है,
आत्मविश्वास बनाए रखना जो डेंगू को हराना है।
डेंगू तो क्या हारते हैं सभी रोग आत्मविश्वास से,
दवा और डॉक्टर तो सिर्फ़ एक बहाना है।


लेखन तिथि : 31 अक्टूबर, 2021
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