मृदुल नींद नीड़ की गोद में
और परों की सेज नरम,
बाहर झुलसी हवा बह रही
रह-रह कर लू तेज़ गरम,
बाहर अर्धनग्न पीड़ा,
भीतर क्रीड़ा-लबरेज़ हरम,
करुणा के आँगन में, नेता,
दे थोड़ी-सी भेज शरम!
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