धूप की चादर
बिछी हुई है
दिन के पलके में।
झूम-झूम के पावस
बिल्कुल न बरसा।
ताल-झरना-खेत लगा
जल को तरसा।।
कोई रात के
बीज बो गया
है धुँधलके में।
हुआ धाँय-धाँय सुन
सन्नाटा घायल।
औ आह की
छनक उठी छम-छम पायल।
बंदूकों के
साए हुए
आतंकी हलके में
अपराध की दुनिया से
सुख आहत है।
गुमशुदा सी हो जाए
ज्यों राहत है।।
है न्यायालय की
लिखी हुईं शर्तें
मुचलके में।
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