धुँधलके में (नवगीत)

धूप की चादर
बिछी हुई है
दिन के पलके में।

झूम-झूम के पावस
बिल्कुल न बरसा।
ताल-झरना-खेत लगा
जल को तरसा।।

कोई रात के
बीज बो गया
है धुँधलके में।

हुआ धाँय-धाँय सुन
सन्नाटा घायल।
औ आह की
छनक उठी छम-छम पायल।

बंदूकों के
साए हुए
आतंकी हलके में

अपराध की दुनिया से
सुख आहत है।
गुमशुदा सी हो जाए
ज्यों राहत है।।

है न्यायालय की
लिखी हुईं शर्तें
मुचलके में।


लेखन तिथि : 2020
यह पृष्ठ 33 बार देखा गया है
×

अगली रचना

होने लगी झमाझम बारिश


पिछली रचना

कटी-कटी है
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें