दिल्ली (कविता)

कितनी नई है
और पुरानी भी यह दिल्ली
हर हमलावर का रुख़ किए हुए
दिल्ली की ओर

जिधर भी दिखें
कसी हुई जीन
सजे हुए घुड़सवार
वह रास्ता जाता है
दिल्ली की तरफ़

हज़रत निजामुद्दीन औलिया ने
फ़रमाया था : 'अभी दूर है दिल्ली'
मुझे मालूम नहीं कोई पहुँचा या नहीं
जो रवाना हुए थे दिल्ली के लिए
इतिहास में एक भी उदाहरण दर्ज नहीं

दिल्ली अभिशप्त है
दिल्ली नहीं पहुँचने के लिए
फिर भी हर सुबह
आदमी करता है कूच
दिल्ली के लिए


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