साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बेगूसराय, बिहार
1983
देखो आई नई दीवाली, लेकर जीवन में ख़ुशहाली। न घर न आँगन है खाली, चारों ओर है दीपक-बाती। आओ अपने हाथ फैलाओ, दुश्मन को भी गले लगाओ। छोड़ कर सब गिले-शिकवे, अंतर्मन में प्रकाश फैलाओ। याद करो उन वीरों को भी, जो सरहद से आ न पाए। दीया उनके नाम का भी, अपने घर में एक जलाओ।
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