दो जहाँ की हसीं जज़ालत है (ग़ज़ल)

दो जहाँ की हसीं जज़ालत है,
ख़ुल्द से बड़के ख़ूबसूरत है।

मुल्क रब की निगाहों सा दिल-जू,
पाक एकता की पाक मूरत है।

दिल और जान फ़िदा हैं इस पर,
क़ल्बोजाँ की वतन ही राहत है।

इश्क़ मैं ही नहीं करूँ इसको,
हिंद से हर बशर को चाहत है।

हिंद के दम से ही जहाँ क़ायम,
ख़िल्क़ते रब की हिंद ज़ीनत है।

अपने पास वो गुहर नवीननाथ,
जो ज़माने में बेशक़ीमत है।


रचनाकार : नवीन नाथ
  • विषय :
यह पृष्ठ 147 बार देखा गया है
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122 1212 22
×
आगे रचना नहीं है


पीछे रचना नहीं है


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें