दूसरों को मिटाने की धुन में (क़ितआ)

दूसरों को मिटाने की धुन में
आदमी ख़ुद को यूँ मिटाता है
जैसे चुभने की फ़िक्र में काँटा
शाख़ से ख़ुद ही टूट जाता है


रचनाकार : वसीम बरेलवी
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