दुःख ही तो है (कविता)

दु:ख!
कर्तव्य पथ का बोध कराता है।
दु:ख!
अपनों के प्रेम की परीक्षा लेता है।
दु:ख!
दूसरों के दुःखों की अनुभूति कराता है।
दु:ख!
कभी अपनों को मिलाता है तो,
दु:ख!
कहीं अपनों से बहुत दूर कर देता है।
सारा चक्कर दुःख का ही तो है!
गर दुःख न हो तो,
ज़िन्दगी में सुख की अनुभूति ही न हो।
दुःख न हो तो,
अपनों का महत्व ही विदित न हो।
दुःख ही तो है;
जो प्रेम की परिभाषा को पुष्ट करा देता।
दुःख!
जितना दुःख भरा शब्द है;
उतना ही अवश्यंभावी है ज़िन्दगी के लिए।
दुःख के पश्चात,
सुख का सवेरा एक नई किरण के साथ;
प्रकाशवान होता हमारी असल ज़िंदगी में।
सदैव
ख़ुशियों के साथ!


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 2021
यह पृष्ठ 411 बार देखा गया है
×

अगली रचना

जीवन का इतिहास


पिछली रचना

छोड़ दी मुहब्बत मैंने
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें