दु:ख हमें भी हुआ था;
जब हमारी साँसें रुकी थी।
दर्द तुम्हें भी होगा;
जब तुम्हारा व्यापार बंद होगा।
भावनाओं का खेल पूर्ण विराम लेगा।
विचारों का गणित फिर चुनौती देगा।
ऑंख मूँदे विश्वास का परदा उठेगा।
घटनाएँ चलचित्र सी,
खींच जाएँगी सबके मानस पर।
दूरियाँ और दूर होंगी।
नज़दीकियाॅं अंतिम साँसे लेंगी।
झूठ का मुखौटा हटेगा,
सच अट्टहास किए व्यंग हँसी हँसेगा।
रिश्तों की बुनियाद,
सच के आधार पर टिकेगी।
झूठ की लकीर,
बिन अवलम्ब मिटेगी।
तब तुम्हें सत्य का साक्षात्कार होगा।
और यही तुम्हारा प्रतिकार होगा॥
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