एक अर्घ्य शौर्य को (कविता)

असंख्य सूर्य रश्मियों से प्रदीप्त ये धरा,
तेजवान के लिए क्या तिमिर क्या जरा।

सैकड़ों हों घटा या सैकड़ों हों ग्रहण,
वो बिखेरे किरण कर रहा तमहरण।

सूर्य के शौर्य से सुप्त अंधकार है,
अर्घ्य उस सूर्य को जो सत्य है सार है।

हे वंदनीय वीर! हे सूर्यदेव! जाग जाग जा,
सूर्य को अर्घ्य दें और कहें, अंधकार भाग जा।

ज़िंदगी के लिए जो युगों से व्यस्त है,
दीप्तिमान से निशा गर्दिशों से पस्त है।

एक शौर्यवान वीर से प्रफुल्ल बार-बार मन,
अर्घ्य लूँ और करूँ इस शौर्य को नमन।


रचनाकार : गोकुल कोठारी
लेखन तिथि : 30 अक्टूबर, 2022
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