एक ख़याल (कविता)

वह टीला वहीं होगा
झड़बेरियाँ उस पर चढ़ जमने की
कोशिश में होंगी
चींटियाँ अपने अंडे लिए
बिलों की ओर जा रही होंगी
हरा टिड्डा भी मुट्ठी भर घास पर बैठा होगा
कुछ सोचता हुआ

दुपहर को और सफ़ेद बना रही होगी
आसमान में पाँव ठहराकर उड़ती हुई चील
कीकर के पेड़ों से ज़रा आगे रुकी खड़ी होगी
उनकी परछाई
कौए प्यासे बैठे होंगे
और भी सभी होंगे वहाँ
ऐसे उठंग पत्थर जैसे कोई सभा कर रहे हों
हवा आराम कर रही होगी
शीशम की पत्तियों में छिपी

हो सकता है
ये सब मेरी स्मृति में ही बचा हो

यह भी हो सकता है
मेरी स्मृति न रहे
और ये सब ऐसे ही बने रहें।


रचनाकार : शुभा
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