तुम्हारे देखने और न देख पाने के
समझने और न समझ पाने के
आने और आकर चले जाने के
बीच में ही रहना है हमें
अपने अनुभवों की ज़मीन से
बटोरे हुए साहस के बल पर
एक रोचक अजायबघर में क़ैद होकर
दिखते हुए हैं हम पागल चेहरे
अपनी अकारण हँसी
और बेतरतीब रुलाई के साथ
एक अनोखे संग्रहालय में
तब्दील होता हुआ है
हमारा अस्तित्व
अपनी समृद्ध परंपरा की गरिमा
और संशयग्रस्त प्रासंगिकता की शोभा के साथ
एक अदृश्य और घातक ढंग से
दीमकों को समर्पित होते हुए हैं
हमारे कविता-संसार
अपने जैसे-तैसे सपनों
और अकेली आस्थाओं के साथ
समाज के शरीर में
एपेन्डिक्स की तरह
अनावश्यक लगते हुए हैं हम
फिर भी न जाने क्यों
ज़रूरी-से हैं
एक संपूर्णता के लिए
वह अर्थ की हो या व्यर्थता की!
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