साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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कानपुर, उत्तर प्रदेश
1944
एक सपना उगा जो नयन में कभी आँसुओं से धुला और बादल हुआ! धूप में छाँव बनकर अचानक मिला, था अकेला मगर बन गया क़ाफ़िला। चाहते हैं कि हम भूल जाएँ मगर, स्वप्न से है जुड़ा स्वप्न का सिलसिला। एक पल दीप की भूमिका में जिया, आँज लो आँख में नेह काजल हुआ।
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