एक सपना दिए का जिएँ 
हम अँधेरा समय का पिएँ 
दीप बालो, हृदय में धरो! 
हर दिशा में, उजाला करो! 
दीप की बात इतनी सुनो; 
रोशनी के दुशाले बुनो; 
एक पल के लिए ही सही— 
दिन गिनो, रात को भी गुनो; 
ज़िंदगी के अँधेरे हरो! 
हर दिशा में उजाला करो! 
दीप बालो, हृदय में धरो! 
ज्योति अपनी कथाएँ कहे; 
वह किसी रूप में भी रहे; 
रोशनी का यही धर्म है— 
हर गली, गाँव-घर में बहे; 
दीप के पर्व इतना करो! 
आज घर-घर उजाला भरो! 
दीप बोलो, हृदय में धरो! 
दीप ने गीत ऐसा लिखा; 
वह मिला तो सभी कुछ दिखा; 
भूमिका दीप की है कठिन 
तुम करो तो सही एक दिन 
बस यही भूमिकाएँ करो! 
हर दिशा में उजाला करो! 
दीप बालो, हृदय में धरो! 

 
    साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
