साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
1933 - 2015
झर गए— सपनों के लहलहाते पात अजाने ही झर गए। ऊँची टहनी पर केवल एक पत्ती बच रही है। कब हवा चले? कब काल के अनगढ़ हाथों से उसकी हत्या हो जाए, कुछ पता नहीं? मैं जी रहा हूँ सूखे, एकाकी ओक-सा जीवन, जिसकी बची हुई एक पत्ती को ठिठुरी-सी, सिकुड़ी एक हरी पत्ती को कभी भी कोई मिटा देगा, मसल देगा।
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