झर गए—
सपनों के लहलहाते पात
अजाने ही झर गए।
ऊँची टहनी पर
केवल एक पत्ती बच रही है।
कब हवा चले?
कब काल के अनगढ़ हाथों से
उसकी हत्या हो जाए,
कुछ पता नहीं?
मैं जी रहा हूँ
सूखे, एकाकी ओक-सा जीवन,
जिसकी बची हुई एक पत्ती को
ठिठुरी-सी, सिकुड़ी एक हरी पत्ती को
कभी भी कोई मिटा देगा,
मसल देगा।

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