साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मुम्बई, महाराष्ट्र
1981
बचपन गाँव में जवानी शहर में एक बैल की तरह फिर बुढ़ापे ने कहा चल गाँव में, गाँव से पूछा– "तू पहले ही जैसा है कुछ भी नहीं बदला" गाँव ने कहा– "जिसके बच्चे जवानी में गाँव भूल जाते हैं ऐसे नालायक़ बच्चों से विकास कैसे होगा?"
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