गाँव का दर्द (कविता)

बचपन गाँव में
जवानी शहर में
एक बैल की तरह
फिर बुढ़ापे ने कहा चल गाँव में,

गाँव से पूछा–
"तू पहले ही जैसा है
कुछ भी नहीं बदला"

गाँव ने कहा–
"जिसके बच्चे
जवानी में गाँव भूल जाते हैं
ऐसे नालायक़ बच्चों से
विकास कैसे होगा?"


लेखन तिथि : 1 सितम्बर, 2023
यह पृष्ठ 219 बार देखा गया है
×

अगली रचना

चमक


पिछली रचना

सब एक जैसी नहीं होती
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें