साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
1935
कई-कई दिनों तक कुछ भी नहीं दिखाई दिया न पेड़, न पहाड़, न नदियाँ, न जंगल बस्ती भी नहीं दिखी कोई कई-कई दिनों तक सूने निचाट में दिखी अब इतनी देर बाद एक अकेली गाय पूरे मैदान को फेफड़ों में भरती
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