गाय (कविता)

कई-कई दिनों तक
कुछ भी नहीं दिखाई दिया

न पेड़,
न पहाड़,
न नदियाँ,
न जंगल

बस्ती भी नहीं दिखी कोई
कई-कई दिनों तक

सूने निचाट में दिखी
अब इतनी देर बाद एक
अकेली गाय

पूरे मैदान को
फेफड़ों में भरती


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