देखे पल पल
भेष बदलने
वाले दीप।
चहल पहल
सरगर्मी तो
कूचे में है।
सन्नाटा बजता
मानो छूछे
में है।।
खड़े हुए
पातों में
जलने वाले दीप।
चकरी फुलझड़ियों
से बच्चे खेल रहे।
ऐसे कुछ हैं
दुःख अभाव
जो झेल रहे।।
कुछ तो हैं
सूरज से
ढलने वाले दीप।
अमावस काली
दीवाली से हारती।
पटाखे करते
लछमी जी
की आरती।।
अब हम हुए
मोम से
गलने वाले दीप।
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