ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे (ग़ज़ल)

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे

कह देना समुंदर से हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आएँगे

वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठाएँगे मिल जुल के उठाएँगे

जब साथ न दे कोई आवाज़ हमें देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठाएँगे


रचनाकार : बशीर बद्र
यह पृष्ठ 196 बार देखा गया है
×

अगली रचना

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे


पिछली रचना

कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें