साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
1924 - 2018
बेनक़ाब चेहरे हैं दाग़ बड़े गहरे हैं टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ गीत नहीं गाता हूँ। लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे-सा शहर अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ गीत नहीं गाता हूँ। पीठ मे छुरी-सा चाँद राहु गया रेखा फाँद मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ गीत नहीं गाता हूँ।
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