ग़म के साए (नवगीत)

आँखों की बंजर ज़मीन पर
आँसू ऊग गए।

ग़म के साए भाग्य की
डाली पर लटके।
संगी-साथी दे रहे
झटके पर झटके।।

जो भी रवि की भाँति उगे
पश्चिम में डूब गए।

जीवन भी झंझावातों से
भरा पड़ा है।
और अनैतिक बातों का
आकार बढ़ा है।।

सुनते-सुनते राम कहानी
हम तो ऊब गए।

पग-पग पर पहरे कड़े
मारा-मारी है।
नेकी की टहल की
ईश्वर को प्यारी है।।

उत्तर की ओर जाना था
पर हम जनूब गए।


लेखन तिथि : 2019
यह पृष्ठ 194 बार देखा गया है
×

अगली रचना

फँस गया ज़िला


पिछली रचना

कोरोना से बचना है तो
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें