सुबह नींद देर से खुली
ग़म उसका नहीं था
रात को देर से सोया
ग़म उसका भी नहीं था।
वह कल मिला था
अपने बरामदे मे चारपाई पे बैठा
मन ही मन कुछ बुदबुदा रहा था
मैने उससे पूछा-बात क्या है? मुझे बताओ!
बड़े विस्मय से उसने देखा मुझे
और कहाँ कुछ भी तो नहीं सब ठीक हैं।
अगली सुबह मैने जो देखा
आँखो मे अश्क लिए रोता ही रहा
आज फिर सुबह नींद देर से खुली
परन्तु रातें कसमकस में गुज़रती रही...

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