साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3571
नई दिल्ली, दिल्ली
1963
गिद्ध, नोंचने में सिद्ध। दूर-दूर तक प्रसिद्ध। आजकल वह भी सोचने लगा है। मुझ से अच्छा तो आदमी नोंचने लगा है। आकाश में अब बेचारा लुप्त प्रायः है। क्योंकि आदमी ही गिद्ध का पर्याय है।
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें