गुलों की छाँव (नवगीत)

बाग में
पड़ रहे हैं
तितली के पाँव!

फूलों में हैं
ख़ुशबुएँ
आकर बसी!
बबूल की है
बाग से
रस्साकसी!!

तैरता है
हवा में
सपनों का गाँव!

बागों में
खिंचा है
गन्ध का वितान!
अलि की
गुंजन का
है कोई विधान!!

महकती है
जास्मिन सी
गुलों की छाँव!


लेखन तिथि : 2019
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