गुरु (कविता)

सोचो, उसके बिना कैसी होती धरा,
अज्ञान की एक गहन कंदरा।
मैं भटकता इस तिमिर में कहाँ,
जो बनकर उजाला वो आता नहीं,
मैं खो जाता इन अँधेरों में कहीं,
जो पथ में वो दीपक जलाता नहीं।
मैं लिखा वो जो उसने दिया,
ये क़लम उसकी ही आवाज़ है,
उसके बिना बेसुरी ज़िंदगी,
वो संगम सुरों का है, वो साज है।


रचनाकार : गोकुल कोठारी
लेखन तिथि : 3 सितम्बर, 2022
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