तुझको शीश झुकाता गुरु जी,
तुम हो ज्ञान के दाता गुरु जी।
तुम ही ब्रम्हा और विष्णु, महेश,
तुम ही भाग्य विधाता गुरु जी।
पहले आपको फिर हरि को,
सुन लो मैं तो मनाता गुरु जी।
सब नातों से ऊँचा है ये,
जग में आपका नाता गुरु जी।
करके आपके दर्शन मैं तो,
फूल्या नहीं समाता गुरु जी।
जब से आया शरण आपकी,
मान सभी से पाता गुरु जी।
सदा रखियो तुम हाथ शीश पर,
और ना कुछ मैं चाहता गुरु जी।
सच्चे दिल से महिमा आपकी,
'पंवार' निश-दिन गाता गुरु जी।

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