गुरु (कविता)

धरती पर प्राणी का अवतरण,
प्रथम गुरु मात पिता का वरण।
अक्षर ज्ञान विज्ञान का प्रदाता,
द्वितीय गुरु शिक्षक तेजवरण।

संरक्षक व मार्गदर्शक होता,
गुरु सदा पथ प्रदर्शक होता।
अज्ञानता को मिटाकर सदैव,
प्रतिभा का सूक्ष्म दर्शक होता।

सदा मूल्यों का पाठ पढ़ाता,
आध्यात्मिक उत्थान कराता।
परमात्मा की प्राप्ति कराए,
वेद पुराण विस्तार बताता।

गुरु समभाव समदृष्टि धारक,
तत्वदर्शी संत अवगुण मारक।
युगदृष्टा व युग प्रवर्तक शिक्षक,
राष्ट्र का वह भविष्य निर्धारक।।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 2 सितम्बर, 2021
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