गुरु सृष्टि का
सबसे सुंदर
वरदान है,
बिना गुरु के
कहाँ किसी की
पहचान है।
जान कर,
जो न जान पाए,
'सृजन' की नज़रों में
वे नादान है।
न जाने कितने हैं
इनके रूप,
मात-पिता बनकर
सदा देते ये
ज्ञान की धूप।
द्रोणा ने अर्जुन बनाया,
चाणक्य ने चंद्रगुप्त,
साक्षात ब्रह्म का रूप है गुरु
तू अब तक क्यों अनजान है।
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