साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
शिवहर, बिहार
1996
इन भोली सूरत के पिछे, है हैवान बसा क्या है? तुझको पता। भोली सूरत काले नैना, है चाल मस्त मौला, दिन को है बेवाक वो घूमें, जैसे कोई परिंदा। शाम को लौटें घर को आएँ, दिए काम को अंजाम, ऐसी-ऐसी बात वो करते, लगता है कोई इंसान। तुझको लूटा मुझको लूटा, सब घर को किया सुनसान, फिर भी न समझे ये नादान, कहाँ है ये हैवान...?
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