साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
हरदोई, उत्तर प्रदेश
1997
हमीं से दूर जाना चाहता है, तभी वो पास आना चाहता है। नई दुनिया बनाई है वहाँ पर, वही मुझको दिखाना चाहता है। मुझे मालूम है वो पास आकर, हँसाकर फिर रुलाना चाहता है। चुराता आज है नज़रों से नज़रें, किसी सच को छुपाना चाहता है। जफ़ा की सब हदों को तोड़कर भी, वफ़ादारी निभाना चाहता है। परिंदा रह नहीं सकता अकेले, नया वो भी ठिकाना चाहता है।
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