साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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जयपुर, राजस्थान
1952
खो चुके अक्षर पुराने, शब्द सारे गुम हूँ नहीं उस दृश्य में फिर भी नया हूँ कैसा ये संसार हमारे हृदयों को छीलता-सा मोड़ से पुकारता कोई हमारा नाम क्या हमारे थे चेहरे जो चल कर साथ आए कौन-से थे वे लोग जो बिसरा दिए एक घड़ी उल्टी अब भी निरंतर चल रही है क्या समय है यह या कि कोई प्रश्न याद नहीं रह गए पाठ पुराने पहाड़े धुँध गहरी और मदरसा बंद
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