हवा पानी (कविता)

जिनकी हवा होती है
वे पानी पर भी अपना अधिकार कर लेते हैं

न जाने कहाँ से छिपकर अचानक उनके पास
चली आती है हवा
मेरे सूखे बाल ही नहीं सारा शरीर काँपने लगता है

एक हवा चुपचाप ढाक के चटखते अंगारों के नीचे सोई थी
जिसे नाले में उत्तेजित हुए तूफ़ान ने छेड़ दिया
धारा के अनवरुद्ध आर्द्रता सोखती वह उसके साथ हो ली

पहाड़-से जीवन का अधिकार है ऐसे तरल रहस्यों पर
क्योंकि जब हवा बदलती है तो पानी भी बदल जाता है
प्रेम की तिक्त छटपटाहट के लिए
दोनों के पास ही रुकने का समय नहीं है

आज उनकी हवा है तो वे शराब को पानी की तरह पी रहे हैं
मदोन्मत्त हैं सेंमल के फूलों को
अपने पाँवों से रौंदते हुए
उनकी आँखें चुँधिया गई हैं
अख़बारों में ख़ुद की छवियाँ देखते-देखते
उनके कानों में क्षणभंगुरता के गोपनीय निमंत्रणों की
गूँज सुनाई नहीं देती है
अभी जब अमलतास फूलेंगे और फ़ानूस के फूलों से
ढक जाएगा सारा वितान
तब भी वे नहीं समझेंगे
कि जैसे रंग बदलते हैं वैसे ही यहाँ हर चीज़ बदलती है
उनकी हवा फिर लौटकर नहीं आएगी
और पानी?

वह तो कभी उनका था ही नहीं


रचनाकार : ऋतुराज
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