हे सागर संगम अरुण नील (गीत)

हे सागर संगम अरुण नील!

अतलांत सहा गंभीर जलधि—
तज कर अपनी यह नियति अवधि,

लहरों के भीषण हासों में
आकर खारे उच्छ्वासों में

युग-युग की मधुर कामना के
बंधन को देता जहाँ ढील।

हे सागर संगम अरुण नील।
पिंगल किरणों-सी मधु-लेखा,
हिम-शैल बालिका को तूने कब देखा!

करलव संगीत सुनाती,
किस अतीत युग की गाथा गाती आती।

आगमन अनंत मिलन बनकर—
बिखराता फेनिल तरल खील।
हे सागर संगम अरुण नील!

आकुल अकूल बनने आती,
अब तक तो है वह आती,

देवलोक की अमृत कथा की माया—
छोड़ हरित कानन की आलस छाया—

विश्राम माँगती अपना।
जिसका देखा था सपना

निस्सीम व्योम तल नील अंक में
अरुण ज्योति की झील बनेगी कब सलील?
हे सागर संगम अरुण नील!


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