होली का गीत (कविता)

दुःख से भरा है यह माथा
माथे पर लगा दो गुलाल का टीका

जलते घरों की लपटों से
झुलस गए हैं पेड़
इनसे लिपटकर रोई हैं स्त्रियाँ

दुःख से भरे हैं ये पेड़
पेड़ों पर लगा दो गुलाल का टीका

यहाँ गूँज रहा है सूखे का अट्टहास
यहाँ डोल रही है अकाल की छाया
दंगाइयों ने खेली है यहाँ ख़ून की होली

दुःख से भरी यह धरती
धरती पर लगा दो गुलाल का टीका।


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