होली (गीत)

खेल रहा होली, शर भर भर
तेजस का तूणीर!
बेध रहा भूरज की देही
सूरज अमित अधीर!

प्राणशक्ति का धनुष बनाया,
तेज-बीज के बान!
तरुण अरुण रवि उगा क्षितिज पर
भोर बनी मुस्कान!

वल्कलधारिण धरा किरातिन
रवि किरात रणधीर!
खेल रहा होली, शर भर भर
तेजस का तूणीर!

मदोन्मत्त फाल्गुन फिर आया,
फिर रंजिश नभ नील!
फिर सतरंग ब्रजरज उड़ती बन
नयन कल्पनाशील!

गोरसधारिणि धरा अहीरिनि
सूरज मत्त अहीर!
खेल रहा होली, शर भर भर
तेजस का तूणीर!

तंद्रातिमिर वसन, माटी तन,
क्षण भर का उल्लास!
फिर भी धरती के जीवन में
आता है मधुमास!

किलक रही कलिका बन धरती,
सूरज मधुकर वीर!
खेल रहा होली, शर भर भर,
तेजस का तूणीर!


यह पृष्ठ 227 बार देखा गया है
×

अगली रचना

राहें


पिछली रचना

युग की संध्या
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें