हम जान गए साधो दरबार सियासी है (ग़ज़ल)

हम जान गए साधो दरबार सियासी है,
बातें तो अदब की हैं किरदार सियासी है।

इक नर्सरी वाले ने हमको ये बताया था,
कुछ पौध हैं काँटों की रफ़्तार सियासी है।

तहज़ीब पसंदों की चर्चा न किया कीजे,
हर फूल पे पहरे हैं गुलज़ार सियासी है।

तारीफ़ करो उसकी जो सर को बचाए है,
हर रोज़ बदलती रंग दस्तार सियासी है।

मशग़ूल हैं जब ताज़िर लाशों की तिजारत में,
तब क्यों न कहें 'भोला' बाज़ार सियासी है।


रचनाकार : मनजीत भोला
  • विषय :
लेखन तिथि : 1 मार्च, 2022
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अरकान : मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन
तक़ती : 221 1222 221 1222
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