हम कुछ ज़्यादा नहीं चाहते (कविता)

हम कुछ ज़्यादा नहीं चाहते
सिवा इसके
कि हमें भी मनुष्य समझें आप

सड़ी हुई लाशों पर जश्न कुत्ते और गिद्ध मनाते हैं
ज़िंदगी शतरंज का खेल नहीं
जिसमें हमारी शह देकर
जीत लेना चाहते हैं आप

हम कुछ भी ज़्यादा नहीं चाहते
सिवा इसके कि
कहीं न कहीं बचा रहे हमारा थोड़ा-सा स्वाभिमान

समय यूँ ही नहीं गुज़रता
कभी-कभी तो गुज़ारना पड़ता है

सड़ाँध यूँ ही नहीं जाती
उसे समूल ख़त्म करना पड़ता है

फ़िलहाल हमारे पास कुछ भी नहीं है
सिवा आत्म-सम्मान और भाईचारे के।


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