हुस्न-ए-फ़ितरत की आबरू मुझ से
आब ओ गिल में है रंग-ओ-बू मुझ से
मेरे दम से बिना-ए-मय-ख़ाना
हस्ती-ए-शीशा-ओ-सुबू मुझ से
मुझ से आतिश-कदों में सोज़ ओ गुदाज़
ख़ानक़ाहों में हाए ओ हू मुझ से
शबनम-ए-ना-तावाँ सही लेकिन
इस गुलिस्ताँ में है नुमू मुझ से
इक तिगापूए दाइमी है हयात
कह रही है ये आबजू मुझ से
ताक़त-ए-जुम्बिश-ए-नज़र भी नहीं
अब हो क्या शरह-ए-आरज़ू मुझ से
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